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इस तरह अपनी कुछ यूँ गुज़र हुई /kavita.31

aaina
aaina
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इस तरह अपनी यु गुज़र हुई ,
जो भी बलाए थी सब अपने सर हुई
.जो भी कलाम थे हमने पड़े-लिखे ,
उनकी सदाए भी यहाँ दर-बदर हुई .
हम तो भटक रहे थे साए के साथ साथ
,तेरा ख्याल आया तो अपनी सहर हुई
.अश्क पीते थे कल तो ज़िंदा थे
,अब तो शराब भी जैसे ज़हर हुई .
तेरी नज़र की मय ऐसे नज़र छड़ी ,
जैसे नज़र मिली ,वैसे असर हुई
.हमने कभी किसी से कुछ नहीं कहा ,
आंसुओ को मेरे कैसे खबर हुई
.तू है तो कारवाँ भी मेरे साथ साथ है
,तेरे बिना तो जिंदगी सूनी डगर हुई

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