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ईराक ,अफगानिस्तान और अब पाकिस्तान अमेरिका के निशाने पर है . ओसामा बिन लादेन का
शिकार करने के काफी पहले से और बाद में भी पाकिस्तान की सरज़मीन पर अमेरिकी ड्रोन हमलों की
दहशत जारी है ,जिसमे रोज कथित रूप से आतंकवादी और नागरिक हताहत हो रहे है .
लादेन के मारे जाने के बाद पाकिस्तान की अमेरिका को भविष्य में उसकी संप्रभुता नष्ट
करने के विरुद्ध गीदड़ भभकी के बाद भी अमेरिकी हमलो से स्पष्ट हो गया है की आतंकियों की
सुरच्छित पनाहगार बने पाक के तिलिस्म को तार तार करने की कवायद शुरू हो गयी है .
कारगिल .संसद पर हमला , फिर २६/११ के हमलो के समय से भारत की निरंतर
चेतावनियों के उपरान्त भी पाकिस्तान के हुक्मरानों ने अपने यहाँ आतंकियों के विरुद्ध कोई कार्यवाही
नहीं की अपितु भारत के साछ्या परक आरोपों को रद्दी की टोकरी में डालने का उपक्रम ही किया .जबकि
भारत की और से लगातार पाकिस्तान के साथ मैत्री हेतु वार्ता का दोर जारी रखा जाना अतिरिक्त
सदाशयता का परिचायक है .
अब जबकि ” जबर मारे और रोने न दे ” वाली कहावत चरितार्थ करते हुए अमेरिकी तेवर
पाक के प्रति अत्यंत आक्रामक होते जा रहे है तो पाक के हुक्मरानों की बोखलाहट देखते ही बनती है .
उधर लादेन के मारे जाने से पाक में कुछ आतंकी संगठनो द्वारा विरोध प्रदर्शनों का दोर शुरू हुआ है जो
इस तथ्य की पुष्टि करता है की पाक में सत्ताधीश आतंकियों की कठपुतली बने हुए है या यु कहे की पाक
में आतंकियों का ही साम्राज्य है तो अतिश्योक्ति नहीं होगी .
यहाँ रेखांकित किया जाना आवश्यक है की यदि पाक की सरजमी पर अमेरिकी सेना का
प्रभुत्व बढता है तो सन्निकट भारतीय सीमा और भारतीय संप्रभुता भी खतरे में पड़ सकती है अत
भारतीय नेत्रित्व की समझबूझ और प्रतिष्ठा दांव पर है .इसलिए पडोसी देश पाक के प्रति पूर्वाग्रह से
ग्रस्त न होकर वर्तमान परिदृश्य का आंकलन कर सीमा से लगे देशों से उचित सामजस्य स्थापित कर
संगठित रहने का समय है .
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