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अखबारों में पड़ा है की हँसना सबसे मुफीद व्यायाम है . इसीलिए कोलोनी -मोहल्ले में
हास्य क्लब खुल गए है .सुबह सुबह पार्कों में टहलने जाए तो किसी कोने में कुछ वृद्ध दीखने
वाले युवाओं का समूह दोनों हाथ उठाकर बुक्का फाड़कर हंसने का उपक्रम करते हुए दीख
जायेंगे . हो–हो–हो–हां—हां—
घीसू-माधव सरीखे मजदूर-गरीब -गुर्बाओं को समझ नहीं आ रहा है की किस बात पर हँसे .
अपने पीठ से लग गए पेट पर हँसे या कु पोषण के शिकार अपने बाल-बच्चो की दीन हीन
दशा पर अथवा बीबी की फटी धोती से झांकते बदन को देखकर हँसे . देश के इन तमाम
लोगो को हंसने की वजह नहीं सूझ रही है .इन प्राणियों को बाबा के योग और अन्ना हजारे
के लोकपाल का तात्पर्य समझने की ना तो फुर्सत है और ना ही समर्थन-विरोध करने का
कोई कारण समझ आ रहा है . इनको बस यही चिंता है की कल की रोटी की जुगाड़ कैसे होगी
.? कल सुबह सड़क किनारे फावड़ा-कुदाल लेकर जब बैठेंगे तो दैनिक मजूरी पर कोई
खरीददार मिलेगा या नहीं . मंदिर-मस्जिद में बस यही दुआ करते है की हे इश्वर आज की
रोटी का इंतजाम हो जाए बस .
इनके छोटे छोटे बच्चे भी चाय की दुकानों-ढाबों पर मजूरी करते है ग्राहकों के झूठे बर्तन
धोते धोते ही कब जवान जो जाते है पता ही नहीं चलता …ये बच्चे भी कभी हँसते नहीं है .
ऐसे लोग कभी बीमार नहीं पड़ते और बीमार पड़ते है तो दवा और उपचार के अभाव में मर
जाते है . इन लोगो के बारे में किसी अखबार में कोई खबर नहीं छपती, ना ही टीवी चेन्नल
वाले इन गुमनाम नागरिको का चित्रण करते है -क्योंकि इससे उनकी टीआरपी नहीं बढती .
संवेनशील नागरिक की नजर जब भी इन लोगो पर पड़ती है तो उसके होंठो की हंसी भी
गायब हो जाती है .
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