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स्वतंत्रता दिवस पर सर्वप्रथम उन अमर शहीदों का पुन्य स्मरण और भाव – भीनी श्रद्धांजलि ,जिन आँखों ने अंग्रेजो के शोषण-दमन, नस्लीय घृणा के विरुद्ध आजाद भारत का स्वप्न देखा और सुख -सुविधाओं, केरियर जैसी छुद्र आकान्छाओं का परित्याग कर करोडो- करोडो शोषित भारतीयों के स्वतंत्र जीवन के लिए सर्व शक्ति संपन्न अंग्रेजो के खिलाफ एकजुट होकर * अंतिम युद्ध * का एलान किया , अपने प्राण तक न्योछावर कर दिए और हम भारतीयों के आजाद भारत का स्वप्न जैसे- तैसे साकार हुआ–
हो गया है एक सवेरा उस दुनाली रात का
जिस निशाने पर रहे थे मेरे लोग
लाठियां और गोलियां खायी बहुत
गालियाँ भी खा रहे थे मेरे लोग
बहेलियों के जाल में फंसे हुए
पंख फडफडा रहे थे मेरे लोग
मौत के आगोश में जाते हुए
गीत गुन गुना रहे थे मेरे लोग
मेरा रंग दे बसंती चोला ..माई रंग दे …
६४ वर्ष उपरान्त देखें तो प्रतीत होता है की भगत सिंह,राजगुरु,सुखदेव सरीखे नोजवानों ने आजाद भारत वर्ष के लिए जो स्वप्न देखा था ,क्रमश खंडित हुआ है . गोरे अंग्रेज भले ही चले गए, किन्तु उनकी भाषा -संस्कृति के तोर -तरीके तथा शोषण-दमन के हथियार काले अंग्रेजो ने उठा लिए और धीरे धीरे उनका शिकंजा भोले-भाले निर्धन-असहाय नागरिको की गर्दन पर कसता चला गया . आजाद भारत की संवेधानिक व्यवस्था के तहत अवधारणा * जनता का ,जनता द्वारा ,जनता के लिए शासन * पूंजीपतियों द्वारा ,पूंजीपतियों का ,पूंजीपतियों के लिए शासन * में कब स्थापित हो गयी —इन बीते ६४ सालो में पता ही नहीं चला . देश को विरासत में मिले नैतिक-चारित्रिक उच्चतर मूल्य कथित आर्थिक उदारवादी व्यवस्था के पाँव तले रोंद दिए गए , देश की रग रग में भ्रस्टाचार का ज़हर फैलता गया ..भोले-भाले भारतीय जैसे अपने देश में ही पराये हो गए ..शिछा-चिकित्सा, रोजी- रोटी के मूल भूत अधिकार बेदर्दी से हड़प लिए गए और शहीदों के आजाद भारत के स्वप्न पर डाका पड़ गया .
कालेधन का निरंतर विस्तार होने से आम नागरिक की क्रय शक्ति कम होती गयी और महंगाई सुरसा की तरह नागरिको की जीवित रहने के लिए ज़रूरी सुख-सुविधाओं को लीलती जा रही है . . अब हालात यह है की सरकार ने भी हाथ खड़े कर दिए है ..राजनेताओं की आँख का पानी मर गया है ,जो * अपने देश * के नागरिको की तकलीफ अनुभव नहीं कर रहे है ..बस अधिकाधिक धन बटोरकर अपनी सात पीडियो की खुशहाल जिंदगी की व्यवस्था करने में संलिप्त है . अब जब इन नेताओं के कुकर्मो की पोल खुलनी शुरू हुई है तो कई जेल चले गए ,कई अपनी बारी का इन्तजार कर रहे है .
शोषण -दमन,कालेधन,भ्रस्टाचार और बेकाबू महंगाई के विरुद्ध विगत वर्षो में आम नागरिको में भारी गुस्सा है ,जो कभी राम देव तो कभी अन्ना हजारे की अगुआई में हो रहे आंदोलनों में मुखर हो रहा है इस १५ अगस्त को अमर शहीदों का स्मरण करते हुए देश के पथ और धर्म भ्रष्ट नेताओं को सचेत करना चाहिए कही भगत सिंह सुखदेव और राजगुरु के वंशज देश के युवा अपने ही देश में अपनों के विरुद्ध * अंतिम युद्ध * का उद्घोष ना कर बैठे .
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