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कहते तो है भले की !

aaina
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कहते है तो भले की,लेकिन बुरी तरह …अंधेर नगरी चोपट राजा,टका सेर भाजी टका सेर खाजा ..वाली किवदंतियों वाले स्थान फूलपुर से कांग्रेस के चुनावी शंखनाद ने उत्तर प्रदेश की राजनीति को गर्म कर दिया है युवराज ने प्रदेश के युवाओं को महारास्ट्र और पंजाब में रोजगार के लिए भीख मांगने वाला क्या बताया की विपछि दलों ने राहुल के बयान पर तीखी टिप्पड़ियां की है ..सही है की भाषण में सही शब्दों का चयन न करने पर प्राय राजनीति की खिलाड़ी यूँ ही उपहास का विषय बन जाते है ..फिर राहुल गांधी को तो राजनीति के दंगल में अभी जुम्मा जुम्मा दो दिन ही हुए है ..किन्तु इतने भय्या भी नहीं है की लाल मिर्च -हरी मिर्च का भेद कर बैठें .
देश के सर्वाधिक बड़े प्रदेश उत्तर प्रदेश की राजनीति का मिजाज बीते दशक में अत्यधिक बदल गया है मतदाताओं के जातिगत ध्रुवीकरण ने किसी भी रास्ट्रीय अथवा प्रगतिशील दल के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी है और इस तिलिस्म को तोडना लोहे के चने चबाना है . भले ही प्रदेश में अपराध-क़ानून की बदहाल व्यवस्था का प्रश्न हो,बिजली-पानी-सड़क-अस्पताल जैसी मूलभूत सुविधाओं का रोना हो अथवा नेता-मंत्रियों द्वारा जन धन की लूटपाट के प्रकरण हो प्रदेश की जनता भावी चुनावों में किसी बड़े चमत्कार की उम्मीद नहीं कर रही है .
रही सही कसर कांग्रेस-भाजपा की स्थानीय कमेटियों में जन सेवा की भावना के स्थान पर अराजक चेहरा चमकाऊ प्रवृत्ति ने पूरी कर दी है जिस कारण उत्तर प्रदेश का पड़ा -लिखा मतदाता बुरी तरह हताश है फिर केंद्र सरकार पर नित नए भ्रस्टाचार के लांछन और पूंजीवाद समर्थक नीतियों के कारण महंगाई के तांडव ने मतदाताओं को निराश कर दिया है और उसकी उदासी बढती जा रही है …

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