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विदेशियों के हवाले वतन !

aaina
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महात्मा गाँधी ने आज़ादी की जंग मे विदेशी सामानो की होली जलाने का आवाहन किया था उनका विचार देश को आत्म निर्भर बनाने का था किंतु आज़ादी के बाद उनके नाम का उपयोग करने वाले राजनेता देश,समाज ओर बाजार को विदेशियो के हवाले करने को तत्पर है . किसान ओर श्रमिक बाहुल्य वाले देश मे कहा तक उचित है की खुदरा बाज़ार मे 51 फीसदी विदेशी निवेश का निर्णय लिया जाए ,जबकि निरंतर बडती बेरोज़गारी मे नागरिक छोटी – मोटी दुकान चलाकर स्वाभिमान के साथ अपने परिवार का पेट पाल रहे है , बहू रास्ट्रीय कंपनियो की सहूलियत के लिए पहीले ही श्रमिक विरोधी क़ानून बनाकर उनको देशी-विदेशी सेठ साहूकारो का गुलाम बना दिया गया है अब देश के छोटे ओर मंझोले देसी कारोबारियो को
बर्बाद किया जा रहा है . जाहिर है जिसकी पूंजी अधिक होगी बाज़ार मे वही काम कर सकेगा इस मामले मे वीदेसी सेठ ,देसी कारोबारियो पर भारी पड़ेंगे. तर्क है की किसानो ओर उपभोक्ताओं का फ़ायदा होगा ,,किंतु स्वाभिमान सहित अपना रोज़गार चलाने वाले नागरिक विदेशी दुकानो पर दो तीन अथवा 5 हज़ार वेतन पर गुलाम बन जाएँगे जहा न पेंशन होगी ओर ना भावी जीवन की कोई सुरछआ
.सवाल है की सरकार स्वयं बाजार पर नियंत्रण क्यो नही कर पा रही है हम प्रबंधन मे क्यो असमर्थ है देश मे श्रम मूल्य अत्यधिक सस्ता होने के कारण विदेशी कंपनिया अपनी शर्तों पर नागरिको का शोषण करेंगी ओर भारी मुनाफ़ा कमाएँगी ,सेवा करने के लिए पूंजी निवेश नही हो रहा है ,ओर वर्तमान सरकार
सिर्फ़ इस सौदे मे अपना कमीशन सीधा करना चाहती है . आख़िर देश को आत्मनिर्भर बनाने हेतु क़ानून ओर नीतिया क्यो नही बनाई जा रही , देश के प्रशासनिक ढाँचे को मजबूत बनाना चाहिए ओर उत्तरदाई भी.,ताकि देश के नागरिक स्वाभिमान से जीना सीख सकें.इसलिए स्वदेसी उद्योग, कारोबारी ,किसान ओर श्रमिको के हित मे एफ डी आई का हर कीमत पर विरोध होना चाहिए

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