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देश की निर्वाचित सरकार की इतनी फजीहत कभी हुई होगी, इतिहास में ऐसा उदाहरण देखने को नहीं मिलता . पेट्रोल के दाम,ऍफ़.डी.आई और लोकपाल के मामलो में सरकार की एक कदम आगे -दो कदम पीछे की कदम ताल से तो यही प्रतीत हो रहा है .
निसंदेह देश की प्रभुत्व संपन्न संसद को कथित सिविल सोसायटी द्वारा अन्ना के नेतृत्व में जिस तरह से बार- बार चुनोती दी जा रही है देश के भविष्य के लिए कदापि उचित नहीं ठहराया जा सकता . किन्तु संसद द्वारा देश को दिए गए आश्वासन के अनुरूप लोकपाल बिल की सिफारिशे न लाये जाने ,गृहमंत्री के अत्यंत गरिमामयी पद की विश्वसनीयता पर लग रहे प्रश्नचिन्ह ,प्रधानमंत्री की अशक्त भूमिका ,सरकार के कई प्रवक्ताओ द्वारा ऊलजलूल दिए जा रहे वक्तव्यों से सरकार की निरंतर छीछालेदर हो रही है ..ऐसे समय में जब कई दिग्गज नेता-मंत्री और अफसर तिहाड़ की रोटिया तोड़ रहे है , कुछ तिहाड़ का रास्ता तय कर रहे है .भ्रस्टाचार के प्रकरण बरसात में उगे कुकरमुत्तो की तरह देश में जगह जगह दिखाई दे रहे है . रही सही कसर देश की पश्चिनोमुखी आर्थिक नीतियों के विस्तार के कारण सुरसा की तरह फ़ैल रही महंगाई जनित असंतोष पूरी कर रहा है .
दरअसल २०११ विदा होते होते राजनीति की मर्यादा को धज्जी धज्जी कर गया है . संसद के गलियारों में दबे ढंके बेशर्म कारनामो का किस्सा देश के गली कूंचो तक जा पहुंचा है .मेरा भारत महान का नारा अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहा है . कभी राम लीला मैदान तो कभी जंतर मंतर पर झंडा लिए उमड़ रहा असंतुस्ट नागरिको का सैलाब यही चीख रहा है पीर पर्वत सी हुई अब तो पिघलनी चाहिए इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए .
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