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हे माँ !
नों माह तेरी कोख में
नाभिनाल से जुड़ा
खाता-पीता ,सांस लेता हुआ
मेरा आनंदित सफ़र ….
फिर तेरी गोद में खिलखिलाता ,खेलता
तेरे लहू से बनते दुग्ध आचमन का
ईश्वरीय एहसास !
आज भी याद है .
तेरी ऊँगली पकड़
इधर-उधर मचलता
घुटनों के बल सरकता –
अपनी छाया को पकड़ता
किल्कारिया मारता ,
बात बात पर रूठता
रोता और तेरे पुचकारने ,
मनाने की राह देखता
तेरे आँचल की छाँव में
बीतता बचपन ,
किशोर और जवानी
अपने हाथो से तरह तरह के व्यंजन बनाकर
मुझे खिलाने की तेरी जिद
अभी तक नहीं भुला पाया
जब कभी बीमारी में
रात रात भर
मेरे सर को दुलारती..जागती
मेरे लिए हर ख़ुशी इश्वर से मांगती
तेरा ऋण …
नहीं ऋण कहकर
तुझे महाजन कहना ध्रिस्टता है
लाख चाहने पर भी
मुझे क्यों लगता है तेरे लिए
में तेरे जैसा दिल नहीं पा पाया
तू कहा है ? कहा है ?
सपनो में तुझे देखता हु और
सोचता हु ..
यदि धरती पर कोई इश्वर है
तो सिर्फ मेरी माँ ..
प्रकृति की ,इश्वर की अद्भुत कृति
माँ को नमन !
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