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पहिले कहा गया था की अंतरास्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल के दाम घटेंगे तो पेट्रोल की कीमते भी घटेंगी ,लेकिन हुआ इसका उल्टा . बाज़ार में कच्चे तेल के दाम गिरे और पेट्रोल कम्पनियों ने पहली बार ७-५० रूपए प्रति लीटर की भारी वृद्धि का एलान कर दिया . यह भी ज्ञात हुआ की तेल कम्पनिया सालाना भारी मुनाफा कमा रही है , लेकिन सरकार पता नहीं कौन सा गणित लगाकर बता रही है की तेल कम्पनियों को घाटा हो रहा है . बिभिन्न चेनलो पर अर्थशास्त्री सरकार के तर्कों को साछ्य और तर्कों के आधार पर झूठ करार दे रहे है .
दरअसल डालर के मुकाबले हमारा रूपया लगातार कमज़ोर हो रहा है और संभवत विश्व की अर्थ व्यवस्था को अब तेल ही निर्धारित कर रहा है . इसीलिए तेल के इस खेल के कारण देश की मुद्रा का बुरा हाल है . या हमारी सरकार की गलत आर्थिक नीतिया इस गंभीर संकट के लिए जिम्मेदार है .
अन्तरास्त्रिय ख्याति प्राप्त हमारे अर्थशास्त्री प्रधान मंत्री जी को रुपये की लगातार गिरती सेहत सुधारने के लिए कोई फार्मूला समझ नहीं आ रहा है और आनन् -फानन में फटे हाल अर्थ व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए पेट्रोल के दामो में अप्रत्याशित बढोत्तरी की गयी है , जिसके कारण देशवासी ,विशेषकर माध्यम वर्ग त्राहि त्राहि कर उठा है .
किन्तु विरोधी दलों के चेहरे इस भीषण गर्मी में भी दमक रहे है और उनके हाथ सरकार को घेरने का प्रभावी अस्त्र लग गया है . इसे कहते है गर्मी में ठंडक का एहसास . वे लोगो के इस गुस्से को चाहे जैसे केश करने का अवसर खोना नहीं चाहते . सहयोगी दल भी सरकार को आँखे दिखा रहे है . सो लगता है की सरकार पहले से ही सोची समझी रण नीति के तहत २-३ रूपए प्रति लीटर की राहत कर देगी .
ठेठ व्योपारी की तरह पहले बड़े दाम बताकर ग्राहक को तसल्ली देते हुए विशेष छूट का लाभ देकर ग्राहक पटाने का मन्त्र सरकार ने भी सीख लिया है विरोध की ताकत और शक्ल देखकर ही सरकार पेट्रोल के दामो में रोलबेक का मन बनाएगी ..और बेचारी जनता इसी में संतोष कर लेगी की चलो साड़े सात में से दो रुपये तो बचे .
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