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हिन्दू प्रधानमंत्री ?

aaina
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आर०एस०एस० प्रमुख ने फिर एक नई बहस शुरू की है कि हिंदुत्व वादी प्रधानमन्त्री होना चाहिए . इस विचारमात्र से ही कट्टरवाद की बू आती है . हिन्दू की प्रतिध्वनि में मुस्लिम -सिख-ईसाई शब्द स्वाभाविक है ,जो द्वन्द पैदा करते है .


सिर्फ भारतीय क्यों नहीं ? इतिहास -पुराण के आधार पर स्वतंत्र भारत को नहीं देखा जाना चाहिए . पूजा-प्रार्थना पद्धतियों के प्रथक होने से ही हिन्दू-मुस्लिम-सिख ईसाई धर्मों का आविर्भाव हुआ है ,अन्यथा सभी धर्म सत्य-अहिंसा-दया-करुना जैसे श्रेष्ठतम मानवीय गुणों को धारण करने का ही उपदेश देते है .


जबकि जनसंघ भारतीय जनता पार्टीके रूप में परिमार्जित हुई , यदि आर०एस०एस० के आनुषांगिक दल के रूप में ही भारतीय जनता पार्टी को राजनीति करनी है तो स्पस्ट “” हिन्दू जनता पार्टी ” के रूप में कार्य करना चाहिए . . आजादी के ६५ वर्षों में भारत की विचार गंगा में बहुत पानी बह गया है , अब देश के पड़े-लिखे नागरिकों को धर्म के विभिन्न खानों में बाँट कर राजनीति नहीं की जानी चाहिए और जो लोग कर रहे है वे विकास और संमृद्धि की राह में अग्रसर भारत का अहित ही कर रहे है .


यदि आर०एस०एस० अथवा भा०ज०पा० के अनुसार पंथ निर्पेछ्ता ही हिन्दू व्याख्या के अंतर्गत है तो अब तक देश के जो भी प्रधानमन्त्री हुए है , वे ” अधर्मी ” रहे है क्या ? यदि ऐसा होता तो भा०ज०प० या कहे एन०दी ०ये० क़ी और से बने प्रधानमंत्री मा० अटल जी को गुजरात दंगों के सन्दर्भ में यह नहीं कहना पड़ता की मोदी सरकार ने राज धर्म का पालन नहीं किया . अब में विदेश क्या मुंह लेकर जाऊँगा .


मा ०अटल जी भले ही हिन्दू संस्कृति में पले-बड़े ,किन्तु प्रधानमंत्री के रूप में वे सिर्फ भारतीय थे , भारतीय इतिहास में सर्वश्रेस्थ प्रधान मंत्रियो में उनका नाम सदेव आदर सहित लिया जाता है . इसीलिए भा०ज०पा० को ” हिन्दू-हिन्दू” का राग अलापना बंद कर अपने पार्टी के नाम भारतीय जनता पार्टी के अनुरूप सर्व-धर्म समभाव की राजनीति करनी होगी ,तभी देश में प्रथम रास्ट्रीय पार्टी के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त होगी और भ्रष्टाचार के दलदल में आकंठ डूबी कांग्रेस पार्टी को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाकर नए भारत का मार्ग प्रशस्त करने में सफल होगी .

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