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विदेशी मीडिया का आतंक !

aaina
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यु०पी०ये० के प्रथम सत्र के कार्यकाल से पूर्व चुनावों में कांग्रेस ने प्रचार में कहा था की १०० दिन में मंहगाई पर नियंत्रण पा लिया जाएगा , किन्तु सरकार बनते ही प्रधानमन्त्री श्री मनमोहन सिंह ने साफ़ कर दिया की उनके पास कोई जादू की छड़ी नहीं है .

सरकार का प्रथम कार्यकाल जैसे-तैसे पूरा हुआ फिर दूसरी पारी शुरू होते ही यु०पी०ये० सरकार को जैसे किसी की नज़र लग गयी . टू जी स्पेक्ट्रम , कामन वेल्थ के भारी -भरकम घोटाले , ब्रस्ताचार की गूँज देश के कोने-कोने से प्रतिध्वनित होने लगी . इस बीच अन्ना हजारे और रामदेव सरीखे सामजिक क्रान्तिकारियो ने भी भ्रस्ताचार ,घोटालो और संसद सदस्यों पर गंभीर आरोपों के तारतम्य में जन लोकपाल बिल और कालेधन की वापसी को लेकर जब-तब सरकार के कान उमेंठने शुरू कर दिया . और थके -हाँफते विपछ को मानो मुंह मांगी मुराद मिल गयी .


इस बीच बोतल तोड़कर मंहगाई के जिन्न ने जनता में हाहाकार मच दिया चारो और त्राहि -त्राहि मची हुई है . सरकारी कर्मियों को ६वे वेतनमान मिलने से निम्न और माध्यम वर्गीय नागरिको को थोड़ी राहत जरुर मिली , किन्तु बहु रास्ट्रीय कम्पनियों और छोटे-मोटे व्यवसाय में लगे कर्मचारी, श्रमिक अपेछा के अनुरूप वेतन न मिलने से तंगहाल होते गए जिनमे से १०-१५ प्रतिशत नागरिक निम्न-मध्यम से टूटकर दुर्बल वर्ग की श्रेणी में समां गए और ये वर्ग निरंतर बढता जा रहा है , जो शिछा-चिकित्सा और दो वक़्त की रोटी का मोहताज है .


सहयोगी दलों के दबाब में सरकार कई अहम् फैसले लेने में हिचकती रही . साथ ही अपने ही प्रवक्ता और बडबोले मंत्रियो ने पार्टी अनुशासन की धज्जियाँ उड़ाते हुए अंट-शंट बयान देकर करकार की छवि को बुरी तरह प्रभावित किया . प्राय चुप रहने वाले प्रधान मंत्री श्री मनमोहन सिंह ,जो कभी विश्व के चहेते अर्थ शास्त्रियों में शुमार थे और देश-विदेश में आदर सहित जाने जाते थे . अब कांग्रेस के महारथियों की आँख की किरकिरी बन चुके है वही देसी-विदेसी ओद्योगिक घराने भी प्रधानमन्त्री की खुली आलोचना पर उतर आये है .


अभी हाल में अमेरिकी और ब्रितानी मीडिया ने भारत के प्रधानमन्त्री के लिए जो अशोभनीय,गन्दी टिप्पड़ियां की है ,वे देश के सम्मान को आघात पहुंचाती है एवं स्वाभिमानी नागरिकों के मन में अमेरिका और ब्रिटेन के प्रति भारी गुस्सा है . हमारे प्रधानमन्त्री है हम उनसे शिकायत कर सकते है , सवाल पूछ सकते है किन्तु किसी गैर मुल्क के मीडिया को भारत की प्रतिष्ठा से खेलने को कोई अधिकार नहीं है . भले ही अमेरिकी रास्त्रपति ओबामा ही क्यों न हो, उनको पहले अपने देश के गिरेबान में झांकना चाहिए . विदेशी मीडिया की टिप्पड़ियों में अमेरिकी कम्पनियों के हित की चिंता अधिक दिखाई देती है क्योंकि उन्होंने भारत में विदेसी निवेश के कमतर होते अवसरों पर विशेष चिता व्यक्त की गयी है .


भारत के नेताओं और मीडिया को देश में बड़ते विदेशी दबावों का डटकर मुकाबला करना चाहिए और सर्वप्रथम देश के सम्मान को चोट पहुंचाने वाली टिप्पड़ियों के विरुद्ध विदेशी प्रशासन से जवाबतलब करना चाहिए . इस सन्दर्भ में विदेशी निवेश को रास्ट्रीय हित के परिप्रेछ्य में ही अनुमति दी जानी महत्वपूर्ण है. इस दिशा में एफ़०दी ०आइ० बिल के प्रारूप पर पुनर्विचार आवश्यक है .


य०पी०ये० के पास अभी भी वक़्त है सभी सहयोगी दलों को विश्वास में लेकर रास्त्र एवं नागरिको के व्यापक हित में बड़े फैसले लिए जा सकते है . सर्व विदित है की कांग्रेस के खाते में पंचायत अधिनियम ,सूचनाधिकार , कम्पूटर और संचार क्रान्ति जैसे अनेको उपलब्धियां है . इस दिशा में कुछ और क्रांतिकारी और स्वर्णिम पन्ने इतिहास में जोड़ने होंगे तभी २०१४ के चुनावों में कांग्रेस को ताकत और होसला मिल सकता है , अन्यथा अनुशासनहीन और चुके हुए मंत्रियो वाली सरकार जन अविश्वास की भंवर में फंस चुकी है . प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह जी को जादू की छड़ी हासिल करनी ही होगी .

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