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भारतीय नारी क़ी स्वतंत्रता और सम्मान !

aaina
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जिस देश में नारी को पूजने का विधान है ,वहा समाज निरंतर महिलायों के प्रति असहिष्णु होता जा रहा है . फिजां ,गीतिका जैसे प्रकरण यही दर्शाते है . भारतीय बालिकाएं , नारियां हर रोज बलात्कार,हिंसा का शिकार हो रही रही है. विगत वर्षों में ऐसी दुर्दांत घटनाओं की बाड़ आ गयी है जो किसी भी सभ्य समाज और नागरिक को झकझोरने वाली है .
गुहावाटी में गुंडों के झुण्ड ने जिस तरह सरेआम बालिका का चीरहरण किया, वह चोंकाने वाला है , इससे से भी अधिक चिंता का विषय यह है क़ि तमाशबीन भीड़ जैसे मदारी का तमाशा देखती रही , कोई प्रतिरोध नहीं . क्या गाँव क्या शहर सभी जगह स्त्रियों के साथ हिंसा ,अत्याचार हो रहे है .अब तो गाँव पंचायते भी अपने अधिकार का दुरूपयोग कर तालिबानी फरमान सुना कर नारियों के स्वाभिमान क़ि धज्जियाँ उड़ा रही है . स्त्रियों के प्रति यह व्यवहार आदिम और मध्य युग क़ी असभ्यता का सहज ही स्मरण करा देता है . यह प्रश्न विचारणीय है क़ि गाँव तक सत्ता का विकेंद्रीकरण कहाँ तक उचित है ? पंचायती राज पड़े-लिखे विशेषकर गुणी समाज के लिए तो श्रेस्य्कर है किन्तु
अनपड़ या जाहिल ग्राम समाज के हाथ में सत्ता दिया जाना बन्दर के हाथ में उस्तरा दिया जाने के समान है . उल्लेखनीय है क़ि कतिपय पंचायती फरमान तुगलकी आदेश क़ि तरह है जो स्वतंत्र भारत क़ि व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह है. ऐसे प्रकरणों में पुलिस पंचायतों के जुल्म-अत्याचार देखकर भी मूक -लाचार खड़ी देखती रहती है , ये हद है .
सर्व विदित है क़ि स्त्रियों पर हो रहे जुल्म अत्याचार , बलात्कार के अधिकाँश मामलों में न तो कोई ऍफ़-आई-आर- होती है और ना ही किसी अखबार में कोई समाचार प्रकाशित होता है . आजादी के ६ दशक बाद भी भारतीय नारी कथित दलित श्रेणी से भी निम्नतर शापित जीवन जीने को विवश है .
इस स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर नारी के सम्मान को बहाल करने के लिए क्या प्रभावी उपाय किये जाने है , घोषणा होनी चाहिए . भारतीय नारी को तत्काल न्याय और प्रतिशठा मिलनी ही चाहिए , ग्राम पंचायतों के स्तर तक ऐसी घटनाओं क़ी पड़ताल किया जाना और इन तालिबानी पंचायती फरमानों को जारी करने वाले गुंडों के आत्मबल को कुचलना आवश्यक है . जय भारत माँ ..हे माँ तुझे प्रणाम !

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