- 154 Posts
- 173 Comments
गोस्वामी तुलसीदास ने कहा है “जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन वैसी “. चित्त -वृत्ति और दर्शन के अनुरूप ही भक्त की अपनी आस्था निर्मित होती है, जिससे प्रेरित होकर ही वह धार्मिक अनुगमन करता है .
भगवान को तर्क के आधार पर सिद्ध नही किया जा सकता ,हाँ भगवत्ता स्वयं सिद्ध है ,जो यत्र-तत्र – सर्वत्र प्रकृति में व्याप्त है .कण कण मे उसका दर्शन है ,तभी कहा गया जो पिण्ड मे है वही ब्रह्माण्ड मे है .फिर विचारणीय है कि शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द जी ने विवादित बयान क्यो दिया कि शिरडी साई भगवान नही है ,उनकी पूजा नही होनी चाहिये ?जबकि करोडो -करोड़ो की गहन आस्था साई मे है .आस्था नितांत व्यक्तिगत विषय है, जहा किसी का अनुशासन नही होना चाहिये
स्वामी स्वरूपानन्द जी कहते है की साई मंदिर की कमाई तिरुपति मंदिर से अधिक है,.सर्वोच्च पदासीन स्वामियों को अपने मन वाणी और विचार पर संयम स्वावभिक कहा गया है , लौकिक संदर्भो में संतो की रूचि नहीं होती . सर्व विदित है प्राय सभी प्रसिद्द मंदिरो मे अरबो -खरबों की संपत्ति है , देश के नागरिक निर्धन और दुखी है तो इस महासंपत्ति का उपयोग भक्तो के कल्याण में होना ही चाहिए ,सारे भगवान शिव स्वरुप है ,जो कल्याण कारी है .इस प्रश्न पर सभी संत सम्प्रदाय को निर्णय लेना लोकहित में उचित है .
धर्म-ज्योतिष के नाम पर लोग व्यापार कर रहे है ओर धर्म भीरु लोग ठगे जा रहे है .टीवी चेनलो पर ऐसे बाबा लोगो की भरमार है .सनातन धर्म के विशेष चिंतक बाबाओ को चाहिये ऐसे पाखंडी बाबाओ-ज्योतिषीयो से भक्तो को सावधान करे,जो धर्म का गोरखधंदा कर छल -प्रपंच मे निमग्न है और सनातन धर्म को विभिन्न धर्म-सम्प्रदायों के मध्य उपहास का विषय बना रहे है .इसीलिए इनके विरुद्ध वृहत अभियान चलाने की आवश्यकता है .जहाँ तक साई के भगवान होने या ना होने का प्रश्न है वह किसी भी भक्त की व्यक्तिगत आस्था है .किसी की आस्था-श्रद्धा पर चोट करना हिंसा है ….नही भूलना चाहिये एकलव्य ने पत्थर के टुकड़े पर आस्था केन्द्रित कर धनुर विद्या प्राप्त की थी ओर अर्जुन से भी बड़े धनुर्धर कहे जाते है.
Read Comments