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बिहार चुनाव अखाड़े के दांव !

aaina
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आरएसएस के मोहन भागवत जी अगर आरछण की समीछा की बात कर रहे है तो इस पर हो हल्ला नहीं होना चाहिए—–आखिर आरछण कब तक वोट की राजनीति का औजार बना रहेगा –अब जबकि हर धर्म-जाति -वर्ग के शिछित बेरोजगार दर -दर भटक रहे है – अभी सचिवालय में चपरासी के पदो पर पीएच-डी /बी टेक /एम-ए तक हजारों शिछित लोगो ने आवेदन किये है ,जबकि इन पदो के लिए मात्र ८ वी तक की शिछा पर्याप्त है। इस उदाहरण से समझा जा सकता है की बेरोजगार नागरिक अपना और परिवार का पेट पालने के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार है और सर्वविदित है रोजगार न मिलने पर शासन-व्यवस्था -नीतियों के प्रति अविश्वास की भावना उत्पन्न होना स्वाभाविक है , ऐसे लोग सहज ही अपराध जगत की और आकर्षित हो जाते है। पहले कांग्रेस और अब बीजेपी करोडो नागरिको को प्रति वर्ष रोजगार देने के आश्वासन देते रहे है ,लेकिन प्रतिवर्ष रोजगार के अवसर क्रमश कम होते जा रहे है। इसलिए आरछण से वंचित् नागरिको के कल्याण के लिए भी कोई व्यवस्था होनी चाहिए –और मनरेगा जैसी सुनिश्चित रोजगार परक योजनाओ की शुरुआत भी की जा सकती है। बढ़ते बेरोजगारो की फौज देश के लिए गंभीर चिंता का विषय है –संसद में इस विषय पर निर्णायक चर्चा जरुरी है। अन्यथा ये बेरोजगार देश-प्रदेश की शासन-क़ानून व्यवस्था के लिए खतरा बने रहेंगे और अपराध-लूट-हत्याओ पर अंकुश लगाना असंभव हो जायेगा।
किन्तु आर०एस०एस के श्री भागवत के हालिया कूटनीतिक बयान को गैर आरछित वर्ग की चिंता कम -बल्कि बिहार चुनाव के सन्दर्भ में देखा जा रहा है -क्योंकि बिहार महागठबंधन के नेता लालू जी बिहार की जातीय परिस्थति और सुविधा के अनुसार मंडल की राजनीति कर रहे है तो बीजेपी ने अपने वोट बैंक को इंगित कर कमंडल हवा में लहरा दिया है –हालांकि बीजेपी के श्री रविशंकर जी ने समझदारी दिखाकर भगवत जी के प्रस्ताव से असहमति व्यक्त करके आरछित वर्ग को कह दिया चिंता मत करो हम तुम्हारे साथ है — .इसे कहते है तीर एक और निशाने दो। मुहावरे की भाषा में कहे तो चित्त भी मेरी और पट्ट भी।
दरअसल बिहार में मुस्लिम मतदाता भी निर्णायक हो सकते है और महागठबंधन और स पा के तीसरा मोर्चा भी मुस्लिम वोटो की और देख रहा है और अपनी गोटिया सेट कर रहा है –उधर बीजेपी और सहयोगी दल मुस्लिम के अतिरिक्त सभी को एकजुट करना चाहती है –खेल वही –धर्म निरपेच्छ -और धर्म सापेछ –का ध्रुवीकरण हो जाए तो बीजेपी की हो जाए बल्ले बल्ले !
इस देश में धर्मनिरपेछ यानि सेकुलर शब्द का आज तक इस्तेमाल होता रहा है लगभग हर दल करता है किन्तु क्या कोई धर्मनिरपेछ हो सकता है –धर्मनिरपेछ शब्द में ” नास्तिकता” का स्वर है और देश क्या पूरे विश्व में व्यक्तियों की किसी न किसी धर्म-संप्रदाय के प्रति निष्ठा रहती ही है – देश अमूर्त शब्द है परिकल्पना है जो समाज बल्कि व्यक्ति आधारित है –धर्मसापेछ मानव का स्वभाव है।
यह भी सच है बीजेपी के सत्ता में आते ही कुछ सांसद-विधायक -और हिन्दू संगठन के प्रतिनिधि अनर्गल -संविधान विरोधी कड़वे बयान देते रहे है , जबकि प्रधानमन्त्री जी कई बार फटकार लगा चुके है –सत्ता प्रतिष्ठान से जुड़े व्यक्तियों को बोलने-लिखने से पहिले विचार करना चाहिए –संयम आवश्यक है – विविध धर्म -सम्प्रदाय वाले हमारे देश की राजसत्ता को अत्यंत संवेदनशील होना चाहिए –मनसा-वाचा -कर्मणा। अन्यथा बात बात पर उंगलियां उठेंगी –शंकाएं होंगी – –जय हिन्द -जय भारत !

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