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हैदराबाद विश्व विद्यालय के दलित शोध छात्र रोहित द्वारा जातिगत -विद्वेष , उपेछा -अन्याय से तंग आकर आत्महत्या किये जाने से कई विश्वविद्यालयों के छात्र संगठन क्रोधित है और उग्र प्रदर्शन कर रहे है .संवेदनशील नागरिक वर्तमान आधुनिक समाज में ऐसे दुर्भाग्य जनक प्रकरण से हतप्रभ है !
अब जबकि देश ६७वे गणतंत्र दिवस की तैयारियों मशगूल है और इस गौरवमयी अवधि में देश [प्रदेश ]के विश्व विद्यालय में जातिगत विद्वेष से पीड़ित कोई छात्र आत्महत्या को मजबूर हुआ है -तो इस तथ्य की पुष्टि होती है कि हमारा समाज जाति -धर्म विद्वेष ,कुरीतियों ,आपसी भेदभाव के आदिम संकीर्ण विकारों से उबर नहीं सका है . samvidhan – सरकारों ke नीति-सिद्धांत , शास्त्र -शिछकोँ के प्रयास विफल हुए … असभ्य -अराजक वृत्तियाँ उत्साहित है -फलफूल रही है .
रोहित के सुसाइड नोट में लिखे एक -एक शब्द देश के आधुनिक .कथित सुसभ्य समाज पर प्रश्न खड़ा करते है ,कारुणिक परिदृश्य मर्म पर चोट करता है -जब विश्व विद्यालयों जैसे ज्ञान मंदिर जातपाँति अथवा धार्मिक विद्वेष के दुराग्रह से ग्रस्त है तो समाज के आम नागरिको से क्या अपेछा की जा सकती है
इस दुर्भाग्य जनक प्रकरण में वोट की राजनीति नहीं होनी चाहिए और ऐसे तत्वों से सावधान रहना है। इस संवेदनशील मामले का प्राथमिकता पर निस्तारण करते हुए दोषियों के विरुद्ध न्यायसंगत कार्यवाही अपेछित है ।
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